1-॰
तकाज़ा था हमें तेरा
तुझे तो थी कहाँ फुर्सत,
गली की ख़ाक पे हमने
दरो-दीवार को तोड़ा।
2-
अहले-इश्क गर करते हैं
जुनून की बातें
लगता है हो रही हों
खून की बातें।
3-
महफिल मेरी वीरान गर
न हो कोई महबूब,
चाँद से हर बात का
जिक्र हो कैसे?
4-
गर बनी महफिल’मुकेश’
बदलेँ जहां महबूब,
उस गली तेरा तकाज़ा
मंजूर हो कैसे?
5-
बदनाम होकर क्या करें
ये कहो हमसे,
इश्क की शुरुआत पे
गर चलें खंजर।
6-
इश्क इतना भी नहीं कि
आदमी बदनाम,
आबरु अपनी लुटे
हर बात पे इल्जाम।
7-
वफ़ा से दिल्लगी कैसी
नहीं गर दिल लगा होवे,
यहाँ दिल मोम का पुतला
खरीदो दाम दे करके।
8-
दो दुआ मुझको मगर
इतनी नहीं साहिब,
मैं मसीहा खुद को कहीं
कहने लगूं साहिब।
9-
एतबार जिस जुबां पे
क्या कल वो ही,
कफ़न पहनाएगा
यकीं से कहोगे।
10-
जादू तेरे इश्क में
फ़कत इतना लिखा था,
सर से धड़
दिल यार से जुदा।
11-
आशिकी में दम भरने वाली
इतना भी न उछल कि गिर पड़े,
तू उठना भी चाहे न उठ सके
आशिक खड़ा रहे इंतजार में।
12-
मजे गर आपके हैं तो
मजे से दूर हम क्यों हैं,
काश वफ़ा से दिल हमारा
भर गया होता।
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