मेरी बेटी हो मेरे जैसी
ऐसी मेरी चाहत थी
उसका चेहरा हो मेरे जैसा
ऐसी मेरी तमन्ना थी
निर्दयी समाज न माना
बेटी को एक शाप माना
मेरी पुकार किसी ने न सुनी
मेरी चीख किसी ने न सुनी
जन्म से पहले ही उसका अंत कर दिया
मुझ पर वज्रपात हुआ
कौन कहेगा माँ अब मुझको
किसका लूँगी मैं अब चुंबन
कैसे होते उसके नन्हे हाथ
कैसे होते उसके नन्हे पाँव,
कैसी होती उसकी किलकारियाँ
कैसी होती उसकी अठखेलियाँ
वह जब दौड़ी आती
मेरे गले से लग जाती
मेरी गोद को सूनी कर दिया
मेरी चाहत का गला घोंट दिया ।
संतोष गुलाटी
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दिल बाग बाग हो गया।