खंड-खंड विश्वास हो रहा, खंड हुआ नैतिक आचार,
खंडित सोच समाज है पाले, खंडित हुए अखंड विचार ।
कोई मंदिर पर अड़ा हुआ, कोई मस्जिद खातिर खड़ा हुआ,
कोई विकृत सोच को पाले, बड़े नाज़ों से बड़ा हुआ ।
कोई दंगों की बात करे, फिर मासूमों पर घात करे,
हैवानों को कुछ नहीं होता, वो सभी दिशा में काट करें ।
राजनीति औछी बन धारा, कितनों को स्नान कराती है,
खून सभी का नीर बनाकर, नीर में खून बहाती है ।
जीत सुनिश्चित करने खातिर, हर पैतरे को अपनाते हैं,
कोई ललाट पर तिलक लगाए, कई नमाज़ को मस्जिद जाते हैं ।
क्रिकेट के लोग दीवाने इतने, हॉकी को किसने सराहा है,
सचिन जहाँ भारत रत्न है, ध्यानचंद को नहीं मिल पाया है ।
अंग्रेजी की ऐसी शक्ति कि, हिंदी कब उबर सकती है,
जिसने शब्द अंग्रेजी का बोला, अब वो ही कहलाती हस्ती है ।
दुराचार, हत्याएं अक्सर, समाचार पत्र में भरी हुईं,
नारी असुरक्षित भारत में अब, विलाप करें कहीं पडीं हुईं ।
नई-2 बीमारी और जीर्ण देह, कैसे देह इससे लड़ पाएगी,
सभी पड़े हैं शास्त्र असंगत, आयु निरंतर गिरती जाएगी ।
कन्या है जीवन की देवी, क्या पक्षपात तू करता है,
जिस दिन ये कन्या न होगी, अस्तित्व तेरा मिट सकता है ।
जीवन की यह देख के शैली, आत्मा मेरी हिल जाती है,
इन हालातों को ब्याँ करूँ मैं, फिर कलम मेरी उठ जाती है ।
अरुण कुमार जी अग्रवाल
सटिक!..फिर कलम मेरी उठ जाती है..
धन्यवाद रविपाल जी
मन को झकझोर दिया आपकी पंक्तियों ने अरुण जी| उत्तम लेखन|
शुक्रिया जितेन्द्र जी
बहुत खूब
धन्यवाद कौशिक जी