1-,
करके मुलाकात जो
निकला कोई आशिक,
कहने लगा कि कर यकीं
जन्नत से आ रहे हैं।
2-ना ना करते रहे
हमसे वो सारी रात,
आशिकी से जब उन्हें
देखा तो बोले हाँ।
3-
दस्तखत करके कहा
लिखिए कोई ताबीर,
लेकिन मेरे विश्वास का
उम्दा खयाल हो।
4-
जिस दिन छपी मेरी खबर
उसको न कोई होश,
हर गली कहती फिरे
ये मेरा शौहर।
5-
कराहना तुझको लगे
या कि रिश्ता दर्द,
ये जुर्म औरत पर हुआ
इतनी सनद रहे।
6-
तकाज़ा वक्त का ऐसा कि
रुपया आदमी को,
बेबस हुआ देखता है
किस तरह देखो।
7-
सलामी गर मुकर्रर है
सिपाही होकर खड़ा लेले,
बेवजह रंगे-हिना हम
क्यूंकर बदल देवें?
8-
फर्ज जिसने रखा हो
जिन्दगी के तार से ऊपर,
हकीकत उसकी होती है
बयां उसका नहीं होता।
9-
नहीं गर तू अगर शैतां
तो है क्या बता मुझको,
हुआ ये खेल खन्जर का कि
कैसे मेरी गर्दन पर?
10-
चला जो लेकर सलामी
फिर कभी न आने को,
दिलों से गुजरता नहीं
ऐसे शहीद का कारवाँ लेकिन।
(अंतिम चार शे’र बाटला हाउस एनकाउंटर में शहीद जाँबाज इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा की बहादुरी पर उनके लिए लिखी थीं।)