Homeकर्णसिंह चौहानप्रेम का पहला पाठ प्रेम का पहला पाठ प्रजापति 'ओम' कर्णसिंह चौहान 21/02/2012 No Comments यह शर्माना लज्जा से लाल हो जाना डरना बिछुड़ना पछताना पास आना लहराना अमरबेलि सी लिपट जाना उफनते दरिया सी हँस मौन हो जाना शरीर की विभूती में खिल जाना बादलों में छिप कर चांदनी सा पसर जाना प्रेम की दुनिया का पहला पाठ है। Tweet Pin It Related Posts जगती कहीं नहीं थी वहाँ पांचवां प्रेम अपने अरण्य में About The Author प्रजापति 'ओम' Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.