बारिश का मौसम है आया ।
हम बच्चों के मन को भाया ।।
‘छु’ हो गई गरमी सारी ।
मारें हम मिलकर किलकारी ।।
काग़ज़ की हम नाव चलाएँ ।
छप-छप नाचें और नचाएँ ।।
मज़ा आ गया तगड़ा भारी ।
आँखों में आ गई खुमारी ।।
गरम पकौड़ी मिलकर खाएँ ।
चना चबीना खूब चबाएँ ।।
गरम चाय की चुस्की प्यारी ।
मिट गई मन की ख़ुश्की सारी ।।
बारिश का हम लुत्फ़ उठाएँ ।
सब मिलकर बच्चे बन जाएँ ।।
पोस्टेड चट्टानोँ से डर कर नौका पार नहीँ होती कोशिश करने वालोँ की कभी हार नहीँ होती नंही चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारोँ पर सौ बार से चलती हे मन का विश्वास रगोँ मेँ साहस भरता है चढ़कर गिरना गिरकर चढ़ना न अखरता है आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीँ होती कोशिश करने वालोँ की कभी हार नहीँ होतीडुबकियाँ सिंधु मेँ गोताखोर लगाता है जा जा कर खाली हाथ लौट कर आता है मिलते नहीँ सहज ही मोदी के नारे पानी मेँ बढ़ता दुगना उत्साह थी उसकी खाली हर बार नहीँ होती कोशिश करने वालोँ की कभी हार नहीँ होतीअसफलता एक चुनौती हैइसे स्वीकार करो क्या कमी रह गई देखो और सुधार करोजब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम संघर्ष के मेट संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीँ होती कोशिश करने वालोँ की कभी हार नहीँ होती
Nice poem बारिश का मौसम है आया ।
हम बच्चों के मन को भाया ।।
‘छु’ हो गई गरमी सारी ।
मारें हम मिलकर किलकारी ।।
काग़ज़ की हम नाव चलाएँ ।
छप-छप नाचें और नचाएँ ।।
मज़ा आ गया तगड़ा भारी ।
आँखों में आ गई खुमारी ।।
गरम पकौड़ी मिलकर खाएँ ।
चना चबीना खूब चबाएँ ।।
गरम चाय की चुस्की प्यारी ।
मिट गई मन की ख़ुश्की सारी ।।
बारिश का हम लुत्फ़ उठाएँ ।
सब मिलकर बच्चे बन जाएँ ।।
Nice poem बारिश का मौसम है आया ।
हम बच्चों के मन को भाया ।।
‘छु’ हो गई गरमी सारी ।
मारें हम मिलकर किलकावालोँ की कभी हार नहीँ होतीअसफलता एक चुनौती हैइसे स्वीकार करो क्या कमी रह गई देखो और सुधार करोजब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम संघर्ष के मेट संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीँ होती कोशिश करने वालोँ की कभी हार नहीँ होतीरी ।।
काग़ज़ की हम नाव चलाएँ ।
छप-छप नाचें और नचाएँ ।।
मज़ा आ गया तगड़ा भारी ।
आँखों में आ गई खुमारी ।।
गरम पकौड़ी मिलकर खाएँ ।
चना चबीना खूब चबाएँ ।।
गरम चाय की चुस्की प्यारी ।
मिट गई मन की ख़ुश्की सारी ।।
बारिश का हम लुत्फ़ उठाएँ ।
सब मिलकर बच्चे बन जाएँ ।।
Bhut achi thi poem