प्रियतम मेरे,
तुम्ही प्रेम हो परिभाषित।
सुग्र्ह स्वर्ण रूप वाली तुम,
मधुर विचार अधीन।
तुम पर मनह अधर सब अटके,
गीत तुम्ही जीवन संगीत।।
सृजित पुष्प सी कुसमित हो तुम,
अतिमय खार सा मेरा प्यार।
मृग मरीचिका ओढ़ के पल्वित,
अथक सामर्थ्य भी भ्रमित आज।।
पूर्ण सारगर्भित सी प्रेरणा,
बिपुल सोच की तुम भण्डार।
अछुड़ आत्म रूप ये मेरा,
पूर्ण करो इसको प्रिय आज।।
अति गहन ,क्षेष्ठ शब्दावली
बहुत ही अद्भुत रचना। शब्दो को समझने के लिए चातक की तरह ध्यान लगाना होगा।
अतिसुन्दर