संगमरमर की तुम तूलिका
तुमसे लिखता जाऊं मैं
ले लो जो आगोश में
ख़ुशी न मर जाऊं मैं
अगर तेरी नादानियों का
इल्म दिल पर ना होता
तेरी तस्वीर सीने लगाकर
ये छुप छुपकर ना रोता
तुम्हें अकीदत लगे या फिदरत
इसकी हमें परवाह नहीं
हमारी चाहत जो लगे मोहब्बत
तो इबादत की जरुरत नहीं
राहों में आकर तो कह दें
तुमशे अपने दिल की बात
डरता हूँ कोई नादानी
नागवार ना गुजरे कोई अह्शाश
भरा हुआ जाम फलक से
हिलकर कभी बिखर जाता है
जब रूबरू हो जाए जिंदगी
अंगारो पर चलना भाता है
तेरी आँखों में एक धुंधली
तस्वीर सी दिखती है
मैं नहीं हूँ वो अक्ष मेरी
तकदीर की दिखती है
इस रुमानियत को तेरे
नाम पर वारते रहें
तुम जो जुड़ जाओ मुझसे
तो नज्में, उम्रभर छापते रहें