मुझमें मेरे किनारों में
हो गया अंतर देखो
उड़ने की सोचता हूँ
बंध गये हैं पर देखो
पता नहीं दोष मेरा है
या हालात का
खुले आशमानों पर लगा
पहरा दिन रात का
कचोटती है मुझे मेरी
बुद्धिमानी जोर से
आती नहीं नींद मुझे
जेहन के शोर से
कभी जूनून मेरा
माहताब सा लगता था
ताज़ी ताज़ी कलियों का
खिला गुलाब लगता था
भरोसे के साये में
रह गया अन्जान देखो
अपनों से भरा पड़ा
खाली मेरा मकान देखो
बंध गया जमीर मेरा
और दिलो जान भी
खड़े हैं वहीँ रास्ते
सपनों के शमशान भी
कुबड़ा होने लगा
मेरा ये जहान देखो
खड़ा खड़ा देख रहा
ये बेबश इन्शान देखो