Homeअज्ञात कविराही राही Deonath Singh अज्ञात कवि, देवनाथ सिंह 22/06/2014 No Comments अगर मगर ना कर राही। डगर डगर पर चल राही॥ मान लो इस बात को सत। बना लो इसे जीवन का व्रत॥ अब भी अगर समझ के नही। तब जाओ भटक है यह सही॥ मन में रख लो यह ठान । कमाना है मूझे यहां नाम॥ तुम जाओ पहुंच भविश्य तक। क्या थे, क्या हो आज तक॥ ******* Tweet Pin It Related Posts चमचागीरी-63 विधाता दर्द… About The Author deonath.singh.1610 Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.