अपने जीवन की राहों पर
थका हुआ जो हारा
मिली सफलता न उसको फिर
फिरा हैं मारा मारा
अपने बस मे
असमंजस मे
कौन किसे पहचाने ।।
डाल रहा हूँ दाने ।। 1।।
***
ताकि संका न हो मन मे
बनी रहे कुछ आशा
और उजाले के चक्कर मे
अंधकार हैं खासा
अपने जीते
जो भयभीते
बने रहे अंजाने ।।
डाल रहा हूँ दाने ।। 2।।
***
मै ही बना सिकारी खुद का
मै ही बना सिकार
और हॄदय को दे प्रलोभन
किया मधुर ब्यवहार
जीवन शैली
झूठी थैली
पग पग पर खिसियाने
डाल रहा हूँ दाने ।।3।।
***
न जाने क्या अन्तिम मंजिल
कैसा हैं इतिहास
सच्चाई को ढूंढ न पाया
किया बिफल प्रयास
लौट न पाया
बस पछताया
चला जो पता लगाने ।
डाल रहा हूँ दाने ।।4।।
***
अति सुन्दर रचना है
अति सुन्दर रचना है