चिड़िया अपने घोंसले में
बच्चों से बतलाती है
चीं चीं करते बच्चों को
चोंच से अपने खिलाती है
अपने बच्चों का बिछोना
अपने पंखों से बनाती है
जब लगती है सर्दी गर्मी
सीने से अपने लगाती है
बहुत ऊंचा है घर उसका
दुनिया से उन्हें बचाती है
जब जाती है दाना चुगने
चुप रहने को कह जाती है
नहीं थकती मेहनत करने से
जाने कहाँ कहाँ जाती है
भूख प्यास हो सर्दी गर्मी
फर्ज अपने निभाती है
आँख खुले तो चह्चाती
मीठे गीत सुनाती है
सिखाती उड़ने के गुण
परिंदे उन्हें बनाती है
होती है जब रात सुहानी
घर वापस आ जाती है
पंखों में समेट अपने बच्चों को
चिड़िया रानी सो जाती है
राकेश कुमार जी अापकी कविता मुझे बहुत अच्छि लगी । एेसे ही कविता लिखते रहिए यह अाशा करती हुँ ।