१६० की रकम
लगा थोड़ा वहम
उठाया अलग से
देखो मैंने एक कदम
कुछ ऐसा नाम था
नोटों का काम था
लक्की न ७ पर
आजमाया दावं था
ऐसा नहीं की मैं
जीता नहीं एक बार
कई बार जीता मैं
अलग नोट हर बार
फिर सोचा जो अबतक
मैंने कमाया है
वही तो शिर्फ़ अभी
दावं लगाया है
फिर बराबर हुआ
और चल दिया
थोड़े देर बाद फिर से
मन मचल गया
कभी कभी मन भी
मन नहीं रहता
वो तुझसे तेरे
नुकशान की नहीं कहता
मैंने तो बहुत बार दावं
दावं अपना आजमाया
और पूरे दिन में
१६० रु गवायाँ
पर मेले में लोगों का
बुरा हाल था
बस अभी जीतेंगे
यही सवाल था
गुस्सा और हार
बर्दास्त नहीं होती
जब तक जेब
साफ़ नहीं होती
मेरे पिताजी ने बताया था
ऐसा दावं ना लगाना कभी
ईमानदारी की खाना
शॉर्टकट ना लगाना कभी