परवाना कहे शमा से,
समेट कर अपनी बाँहों में ।
सिखा दो मुझे भी कुछ,
ज्ञान की बातें ।
मैं भी सीखूंगा,
औरों को भी सिखाऊंगा ।
क्या ज्ञान है इस ज्योति में,
ये सबको बताऊंगा ।
शमा कहे परवाने से,
जल जाएगा, झुलस जाएगा ।
मत आ मेरे नजदीक,
वरना दुनिया से उठ जाएगा ।
आसान नहीं है ज्ञान की बातें,
इसमें उलझ कर रह जाएगा ।
भक्ति की परिकाषठा है ये,
इसमें जीवन को भूल जाएगा ।
परवाना कहे शमा से,
इसे भूल जाना मंजूर है ।
तुम्हारे इस ज्ञान की ज्योति में,
मुझे उलझ जाना मंजूर है ।
ऐसा ज्ञान मिलता नहीं कहीं,
कई जीवन जी लिए ।
तुम्हारे इस ज्ञान की ज्योति में,
कई उदधार हो लिए ।
बस अब नहीं जाना कहीं ओर,
तुम ही हो मेरे जीवन की डोर ।
मृत्यु आए तो आए,
नहीं जाना तुम्हें छोड़ कर कहीं ओर ।
क्या प्रेम की परिकाष्ठा है,
जीवन भी जिसको मंजूर नहीं ।
खो जाना चाहता है ज्ञान में,
इसको मृत्यु का भी भय नहीं ।
ऐसी भक्ति दे भगवान,
वरना जीवन है बेकार ।
हर किसी को मिले ज्ञान,
ऐसा प्रभु देना वरदान ।
देवेश दीक्षित
9582932268
nice poem
adbhut kavita likhi apne
bahut aacha likha ha aapne