जब बनती हैं पंक्तियाँ
तो कागज कलम नहीं मिलता
लिखना चाहता हूँ कविता
मगर मौका नहीं मिलता
तनहाइयों को समेटना चाहता हूँ
दिल से निकलती चंद पंक्तियों में
पर लिखने से रह जाता हूँ
क्योंकि मौका नहीं मिलता
तनहाई की सोचता हूँ
मगर तनहाई नहीं मिलती
चाह कर भी लिख नहीं पाता हूँ
क्योंकि मौका नहीं मिलता
तारों की चमक को
समेटना चाहता हूँ
ज्ञान कि माला में
पिरोना चाहता हूँ
ढूंढ़ता हूँ अँधेरे में उजाले को
ढूंढ़ता हूँ अपने में छिपी कविता को
मगर ढूंढ नहीं पाता हूँ
क्योंकि मौका नहीं मिलता
जब लिखना चाहता हूँ कविता
तो शब्द नहीं मिलते
जब शब्द मिलते हैं
तो मौका नहीं मिलता
देवेश दीक्षित
9582932268
wah kahs ha
mein apse milne ka mouka mil jaye
kahan rehte ho?
bassi jaipur raj.
phir kaise milna hoga? main to Delhi mein rehta hun. Bus tum aise hi kavita per comment dete raho wahi bahut hai. uske liye pehle se hi dhanyawaad.