मच्छर से साक्छात्कार
मच्छर बैठा हाथ पर
मुझे काटने के लिए
हाथ झटका एक तरफ
उसे भगाने के लिए
नहीं काट पाया मुझे मच्छर
तो आ गया मेरे स्वप्न में
देखने लायक थी उसकी अकड़
मुझे डराने के लिए
बोला रॉब से वो तब
निकल बाहर रजाई से
शिकार है तू मेरा अब
भेजूंगा तुमको तन्हाई में
बात उसकी सुनकर
दिल मेरा दहल गया
मैं आँखें बंद कर
रजाई में दुबारा सो गया
बोला मच्छर गरज कर
कहाँ दुबारा सो गया
मैं अभी गया नहीं
मुंह कहाँ तू छुपा गया
ललकार उसकी सुनकर
क्रोधमुझको आ गया
रजाई से निकल बाहर मैं
उससे लड़ने आ गया
बोला मैं उससे ओ मच्छर
तू क्या मुझे काटेगा
तेरे जैसों को अब तक
न जाने कहाँ पहुंचा दिआ
तिलमिला गया मच्छर ये सुनकर
मुझसे बहस वो करने लगा
बोला मुझसे वो गरज कर
मुझको बड़ा अचम्भा लगा
हमारे काटने से तुम घबराते हो
पहले तुम ये बताओ
डॉक्टर, वकील और पुलिस को
कितनेखिलाये जाते हो
कहा मैंने उससे तुनक कर
तुम क्या जानो यहाँ कि माया
तुम्हारी तरह नहीं कि लपक कर
मुफ्त में खून चूस लिया
बोला मच्छर इतरा कर
बदले में हमने भी तो दिया
डेंगू – मलेरिआ इत्यादि कहकर
उसने सीना तान लिया
मेंने कहा फिर उससे बेवकूफ
तुमने बीमारी के सिवाए क्या है दिया
डॉक्टर, वकील और पुलिस ने
बदले में सर्विस ही है दिया
सुनकर मच्छर खिस्यागया
और दांत पीस कर रह गया
कुछ सोच कर बोला इठलाकर
मिस्टर तुमने अभी हमें जाना नहीं
आगे इस साम्राज्य के हम ही हैं राजा
नहीं लगा सकते तुम हमारी जनसँख्या को ताला
तुम लोग होगे नहीं तो बजायेंगे हम बाजा
इस सुनसान दुनिया के हम ही होंगे बादशाह
उसकी ये शायरी सुनकर में रह गया दंग
क्योंकि उस मच्छर को नहीं था बोलने का ढंग
बोला फिर आगे जब तो दिमाग रह गया सन्न
कहाउसने मुझसे अकड़ कर
तुम्हारे ये मंत्री संत्री सब गायब हो जांयेंगे
तब हम लोग डंके बजायेंगे
और जब तुम विवश हो जायोगे
तो हम लोग पार्टी मनाएंगे
उसकी बात सुनकर में घबरा गया
रजाई में घुस कर सो गया
जब स्वप्न मेरा टूटा
तो वह मच्छर आँखों से मेरी ओझल हो गया
देवेश दीक्षित
9582932268