माँ तेरा आँचल ढूंढता हूँ,
होता हूँ जब किसी उलझन में ।
अन्धकार में खो गया हूँ,
क्योंकि ढूँढ न पाया तेरा आँचल मैं ।
इतना फंस गया हूँ,
जिंदगी के कशमकश में ।
दुलार तेरा ढूंढ रहा हूँ,
ढूँढ रहा हूँ तुझे कण-कण में ।
एहसास दिलाता है मुझे,
तेरा सर पर हाथ फिराना ।
भले ही न हो साथ मेरे,
पर न भूल पाया, तुम्हारे प्यार का खजाना ।
होता जब बीमार मैं,
तुम्हारा पास में आकर बैठना ।
जब लगती चोट मुझे,
तेरा वो प्यार से डांटना ।
पहले लगता था बुरा मुझे,
अब महसूस तुम्हें सिर्फ करता ।
पहले लड़ता था तुमसे मैं,
अब रह गया तुम्हें सिर्फ याद करना ।
जाते वक्त भी न तुमको देख पाया मैं,
उस मनहूस घड़ी को मैं कोसता ।
लिपट कर तुम्हारे मृत शरीर से,
तुम्हारे आँचल को पकड़ता ।
कि शायद तुम वापस आ जाओ,
और प्यार से हाथ फेरकर मुझे पुकारो ।
पर न तो मैं तुम्हें रोक ही पाया,
और न थाम ही पाया तुम्हारे आँचल को ।
माँ तेरा आँचल ढूंढता हूँ,
होता हूँ जब किसी उलझन में ।
अन्धकार में खो गया हूँ,
क्योंकि ढूँढ न पाया तेरा आँचल मैं ।
देवेश दीक्षित
9582932268
मार्मिक रचना।