सोचता हूँ अक्सर तुझे ही न जाने क्यूँ
लाख मनाता हूँ इस दिल को पर ये न माने न जानेक्यूँ
रोकता हूँ खुद को टोकता हूँ खुद को
पर रोक न पाऊॅं खुद को न जाने क्यूँ
बुनू ख्वाब हर पल तेरे
तू ही ख्वाबों में मेरें यही चाहूँ हर पल मैं तो न जाने क्यूँ
आँखों से कह दूँ सब कुछ
जुबां से कुछ न कह न पाऊॅं तुझसें न जाने क्यूँ
करू फरियाद दिल से
तू सुन न पाये न जानेक्यूँ
धम गई हैं सांसे
पर खुली हैं आँखें तेरे इंतजार में न जाने क्यूँ