ज़हन में सवाल हैं कई
बस जबाव ढूंडता हूँ ,
गणित के नहीं ,विज्ञान नहीं,
ज़िंदगी के अहम सवाल हैं,
मिल जाएँ सारे जबाव ,
बस ऐसा कमाल ढूंडता हूँ।
इतना कुछ पोथी में पढ़ गए ,
इतना कुछ हकीकत में कर गए
क्या पाया है ? क्या पाना है?,
कहाँ से आए हो ? कहाँ जाना है ?
है यह जबाव जहां ,
में तो वह किताब ढूंडता हूँ।
सच का सच क्या है?
झूठ का भी सच क्या है?
लोग सच्चा झूठ ब्याँ करते है
या झूठा सच ?
सच को सच जानूँ मैं
ऐसा जहन ढूंडता हूँ मैं।
क्या मैं आम आदमी हूँ ?
या मैं खास आदमी हूँ ?
सुना हैं हम सब तो इंसान है
क्या है आम क्या हैं खास ?
कोई सही से तालीम कराय
ऐसा एक शख्स ढूंडता हूँ
यह ज़मीं ये आसमां ,
ये दुनिया बड़ी अजब है,
कुदरत के नज़ारे देखो
कितने खूबसूरत है !
फिर भी
क्यों बैचन है इंसान ?
क्यों दुखी है ,हताश है ,
क्यों चालक है ?
ये सब जबाव ढूंडता हूँ।
गुरुओं को देखा है, पंडितों देखा है
राजनेता को देखा अभिनेता को,देखा है
आज एक का झूठ बेनकाब होता है
कल दूजे का सच
आखिर क्या वो पाना चाहते हैं ?
क्या जाताना चाहते है?
छोड़ पीछे एक दूजे को
बस, आगे निकाल जाना चाहते है
क्या ये तमाशा है?
या सब एक ड्रामा है ?
मुझे इसका एहसास कराये ,
एस एक सदगुरु ढूंदता हूँ ।।
-विनोद कुमार चौहान