आँखों में एक अरमान लिए फिरते है
होंठों पे प्यारी सी मुस्कान लिए फिरते है
दर्द से भरी है ये दुनिया अब
तभी दर्द से ढकी हुई एक नई संसार लिए फिरते हैं
हर वक्त जंग में लुट रहे है लोग यहाँ
हर लोग अब सर में रक्त का सैलाब लिए फिरते है ।
ज़ालिम है लोग या पापी है उनकी आदते
कुछ तो प्रेमी है कुछ हाथों में खंज़र लिए फिरते है
बैठ के अंधेरे कमरे में उजाले की आश था मुझे
लोग तो स्वार्थी हैं खुद के लिए जलता चिराग तो दूसरों के लिए बुझा हुआ मसाल लिए फिरते है ।
।।शिव कुमार सिंह।।