एक बार नाखूनों कि बैठक हुई,
हर जीव के नाखूनों ने एंट्री ली ।
हॉल खचाखच भरा हुआ था,
पूरा सांसद लग रहा था ।
वैसा ही शोर,
वैसा ही कोहराम ।
हाल इतना बुरा था कि,
लग रहा था पूरा शमशान ।
किसी तरह फिर शांति छाई,
नाखूनों को फिर स्मृति आई ।
किस मक्सद से इकठ्ठा हुए हैं,
ये उनकी समझ में आई ।
नाखूनों ने अपना ग्रुप बनाया,
अपने मालिक का वर्णन सुनाया ।
कोई मालिक कि अपने तारीफ करे,
तो किसी ने उनको नॉर्मल बताया ।
जब सब बोल चुके तब,
एक आधा अधूरा नाख़ून उठा ।
बोला करुणामई स्वर में जब,
तब हर एक नाख़ून झेंप उठा ।
कहानी थी उसकी अजीबो गरीब,
आधा खा गया उसको दानव अजीब ।
अभी भी नहीं बक्सता उसको,
शायद पूरा ही चट कर जाता वो ।
कहता ऊपर वाले का शुक्रगुजार हूँ ,
जो कि आप सब के बीच विराजमान हूँ ।
वरना तो मेरी कहानी खत्म ही थी,
उसने कोई गुंजाईश छोड़ी नहीं थी ।
वो तो गनीमत है कि मांस से जुड़ा हूँ ,
तभी इस भरी सभा में खड़ा हूँ ।
फटे हाल थी उसकी कहानी,
ये थी उसकी अपनी जुबानी ।
देवेश दीक्षित
9582932268