बाड़ खाय जब खेत को , मांझी डुबाय नाव ।
उल्टी- गंगा बह रही , ये कैसा बदलाव ।।
राजनीति दोषी नहीं ,दोषी खुद इंसान ।
करता गलती जानकर , फिर बनता अन्जान ।।
राजनीति जब से बनी , स्वार्थ-साधना तन्त्र ।
क्रिया सब उल्टी हुई ,विफल हुये सब मंत्र ।।
दहशत को आदर मिले ,स ज्जन को दुत्कार ।
पीते रहे नाग दूध , बीते बरस हजार ।।
सत्य वचन