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लाडलों का कहां गया बचपन
वो रूठना और मचलना, बात-बात अनवन
छत पर सोना छूटा,छूटा आसमान का ज्ञान,
सप्त ॠषि व ध्रुव तारे की,कठिन हुई पहचान,
मिट्टी के घरौंदे छूटे, छूट गया आंगन ।।
लाडलों का………….
जोड़-बाकी का ज्ञान कंचों ,सहज सीख जाता था,
और निशाना संतोलिया से, उसको आ जाता था,
आज सुविधा बेहतर उसको, फिर उदास
क्यूं मन ।।
लाडलों का कहां……..
नाव बना कागज की, और पानी में तैराना,
कहां मिला इनको बारिश में, छपक- छपक
के नहाना,
मात-पिता की इच्छाओँ ने,छीना तन और मन ।।
लाडलों का कहां……..
नानी-दादी के किस्से ना, जिन्हें मिली हो गोद ,
क्या चिकने कागज की पुस्तक, दे पायेगी
मोद,
तीन साल का बालक भेजा,विद्यालय बनठन ।।
लाडलों का कहां……..
गुड्डे-गुड़ियों का खेल सिखाता, उसे सामाजिक ज्ञान,
कागज के हवाई जहाज से,मिले सहज विज्ञान,
मत छीनो बालक से खुशियां, ऐसे करो जतन ।
लाडलों का कहां गया बचपन।।
विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’
गंगापुर सिटी, स.मा.(राज.)
322201
मोबा.-09549165579