Homeविश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'जप रहे माला … जप रहे माला … Vishwambhar pandey विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' 30/03/2014 No Comments बिना टिकिट बागी हुये, कितने आज दबंग बदल गये कुछ इसतरह , बदले गिरगिट रंग बदले गिरगिट रंग ,ताल चुनाव की ठोकी समीकरण किए फैल, राह कितनों की रोकी कहे ‘व्यग्र’ कविराय,चुनावी खेल निराला कल तक थे जो गैर,उनकी जप रहे माला रंगबदलेद Tweet Pin It Related Posts नजारा मेरी गली का… (कविता) कहां गया बचपन… करना है मतदान… About The Author Vishwambhar pandey Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.