Homeविश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'धीरे -धीरे शीत धीरे -धीरे शीत Vishwambhar pandey विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' 29/03/2014 No Comments धीरे -धीरे शीत अब ,जाने को बेताब सूरज ने नरमी तजी,तीखे हुये जनाब तीखे हुये जनाब ,छांव अब लगती प्यारी जो थी हवा कटार , लगे अब न्यारी-न्यारी कहे ‘व्यग्र’ कविराय , ऋतु गर्मी की आई तज के गर्मागर्म , ठण्डे ने धांक जमाई । Tweet Pin It Related Posts माहिया छंद (कविता) जप रहे माला कहां गया बचपन… About The Author Vishwambhar pandey Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.