बिकने के चलन में यहाँ
चाहतें उभारों में हैं
हम तुम बाज़ारों में हैं
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- बेटे का प्यार बिका है
- माँ का सत्कार बिका है
- जीवन साथी का पल-पल
- महका शृंगार बिका है
विवश क्रय करें जो पीड़ा
ऐसे व्यवहारों में हैं
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- संदर्भों की खामी है
- सपनों की नीलामी है
- अवगाहन प्रीत मीत का
- परिणामित नाकामी है
बस अपमानित होने को
सिलसिले कतारों में हैं
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- जो चाहें और किसी को
- साथ जिएँ और किसी को
- चित्र सजाकर कृष्णा का
- धूपें कजरी गठरी को
इन्हीं मुखौटों के युग में
कुछ गवाह नारों में हैं
यथार्थ पर आधारित कविता,आधुनिक कविता