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- बाँट दिए घट तट पनघट सब
- भाव बेग तन-मन बाँटे हैं
- आँगन घर उपजे काँटे हैं
हम अनैतिहासिक अनुश्रुति से
हैं अनुस्यूत अनूतर कृति से
सदाचार के हाट सजाए
बैठे अथक अनैतिक भृति से
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- लिए त्राटकी अश्रु निवेदन
- सबने निजी स्वार्थ छाँटे हैं
सरोकार सब व्यापारी से
विस्मृत हुए महामारी से
गीत गात सद्भावों के स्वर
आहत गूँगी लाचारी से
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- पुनः अहिल्या पाहन जैसी
- राम आस पथ सन्नाटे हैं
आवाहन अब नहीं जागते
सुर चेतन भी नहीं रागते
राम लखन सीता रामायण
अब चौबारे नहीं बाँचते
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- नंगी पीठों को आयातित
- आर लगे पैनी साँटे हैं