करते बंधन मजबूर
हो कर अपनों से दूर
मीठी मीठी यादों को
बना के कहार
हिलोरें मन लेता
उच्छ्वास भर लेता
तभी नयनों को भातीं
दिल को लुभातीं
चट्टानों के साए में
निडर वादियाँ
वे सुरम्य घाटियाँ
कहीं देवदार कैल नियोजों के जंगल
कहीं सेब खुर्मानी के पेड़ों के झुरमुट
कहीं ढांकों पर सुंदर घास के बल-बल
कहीं झरनों की झर झर
कहीं कूह्लों में बहते पानी की कलकल
कहीं चट्टानों में समा कर
कहीं उनसे टकरा कर
सतलुज के जल के भयानक ठहाके
वो छल-छल छलते मन को छ्लाके
अपनों की याद का तोड़ें सिलसिला
हवा की सह्न-सह्न
कौवों की काएं-काएं
कहीं दूर लुढ़कती चट्टानों की धाएं-धाएं
कहीं भेड़ बकरियों की मैं-मैं मीं-मीं
क़ुदरत से जुड़ते यूं दिल की तरंगें
तोड़े दूर मोड़ पे आती
गाड़ी के हार्न की टीं-टीं
फ़िर कहीं दीखते
मेघ को चीरते
रूखे-रूखे वे पर्बत शिखर
ऊबड़-खाबड़ चट्टानों पर जैसे
होकर खड़े हैं सबल निडर
गहरे पाटों से उनके रिसती सी खन्दक
कभी चूमता मेघ करके आलिंगन
रक्स करते जो मानों
वो थकते न मानों
कहीं ढांपें उघारें कहीं उनकी अस्मत
कहीं वर्फ़ चमकती जब बर्क लिस्कती
हों लसित चेहरे पे मानों चांदी के गहने
हरे-हरे कंढे छितराए कहीं
जैसे चिंदी-चिंदी मखमली कपड़े हों पहने
हर दृश्य अतुल्य है नयनाभिराम
दिखता नहीं ऐसा और कहीं है
बिभिन्न रूपों में है और कई हैं आयाम
प्रकृति का तो बस यहीं है
अजर है अमिट है यौवन ललाम
अजर है अमिट है यौवन ललाम I
***-***-***-