सरगर्मी है माहौल -ऐ -हिन्दोस्तां ,
बला का शोर होता है .
कोई रहनुमा बनता , कोई सिमटता ,
बाज़ू -ऐ -ज़ोर होता है .
कोई झाड़ू चलाता , कोई बोता कमल ,
और कोई हाथ ढोता है .
पर कोने पे, कुतरे आशियाँ में ,
वो बैठा अब भी रोता है .
बनो रहनुमा , या कि उठा दो परचम ,
किसी को बेदिली क्या !
लड़ाई अब भी होती, गिरता है कतरा,
दिन -दिन पे कालिख और होता है .
वो कहे क्या! बस सन्नाटे से पूछता है ,
ये कालिख न बन जाये अमावस ,
या के बुझ पड़े , सागर -ओ -मीना ,
बेज़ार -ऐ -राज होता है .