हाथ जोड़कर सबके आगे बोल रहे हैं नेता जी।
एक दूसरे की पोलों को खोल रहे हैं नेता जी।।
प्रेम-मोहब्बत से जीवन को जीने के हम सब आदी।
जाने क्यों विष शुद्ध हवा में घोल रहे हैं नेता जी।।
|| कवि : ब्रह्मदेव शर्मा ||
महोदय,
सादर प्रणाम।
उक्त मुक्तक मेरे स्वयं के द्वारा रचित है किन्तु अज्ञात कवि का लिखा हुआ आ रहा है ।
ऐसा क्यों है? जबकि मुक्तक के नीचे मैंने अपना नाम || कवि: ब्रह्मदेव शर्मा || भी लिखा
हुआ है।कृपया इसे सही करने का कष्ट करें ताकि मैं और भी कुछ सार्थक पोस्ट करने
की कोशिश कर सकूँ।
उत्तर की प्रतीक्षा में,आपका शुभेच्छु
||कवि: ब्रह्मदेव शर्मा ||
महोदय आप अपना पंजीयन करो उसके पश्चात आप जो भी कविता पोस्ट करो उसमे पब्लिस करने के पूर्व अपना नाम चयन करो फिर आपका नाम आयेगा कविता के नीचे नाम लिखने कि जरूरत नही हैं
महोदय,
सादर प्रणाम।
उक्त मुक्तक मेरे स्वयं के द्वारा रचित है किन्तु अज्ञात कवि का लिखा हुआ आ रहा है ।
ऐसा क्यों है? जबकि मुक्तक के नीचे मैंने अपना नाम || कवि: ब्रह्मदेव शर्मा || भी लिखा
हुआ है।कृपया इसे सही करने का कष्ट करें ताकि मैं और भी कुछ सार्थक पोस्ट करने
की कोशिश कर सकूँ।
उत्तर की प्रतीक्षा में,आपका शुभेच्छु
||कवि: ब्रह्मदेव शर्मा ||
महोदय आप अपना पंजीयन करो उसके पश्चात आप जो भी कविता पोस्ट करो उसमे पब्लिस करने के पूर्व अपना नाम चयन करो फिर आपका नाम आयेगा कविता के नीचे नाम लिखने कि जरूरत नही हैं