एक रोज़ यही सोचा किये
ज़िन्दगी में अब तक क्या किये
न हसरतें अपनी पूरी किये
न दिल किसी का तोड़ा किये
न किसी की आंख में आंसू दिए
न राख को हवा दिए
न कोई सितम किये
न खुदा से इन्साफ लिए
न कोई इनाम लिए
न किसी को तमगा दिए
न वक़्त को रोका
न कोई हिसाब लिए
न दर्द का बदला किये
न उनसे वादा खिलाफी किये।
वो सनम बेवफा थे क्या हुआ
क्या वफ़ा को हम ने अपनी नए अंदाज दिए ??
वो जुल्म का बवंडर थे तो क्या हुआ
मज़ा तो तब है जब
इन्साफ का तूफान बनके तू कातिलो के सीने में जले।।
12 March 2014
कविता अच्छी लगी,धन्यवाद।