द्वेष क्लेश भय सभी मिटाने, देखो आयी होली रे |
आयी सबको गले लगाने, रंगों की ये डोली रे ||
रंगे हुए हैं सबके चेहरे, हर दिल में हरियाली है,
संग श्याम के आज झूमती, हर राधा मतवाली है |
माथे पर गुलाल रच आयी, मस्तानों की टोली रे,
आयी सबको गले लगाने रंगों की ये डोली रे ||१||
आज नहीं दुश्मन है कोई, खरा न कोई खोटा है,
आज नहीं दीवार है कोई, और न कोई छोटा है |
हर घर में यूँ गूँज रही है, एक प्रेम की बोली रे,
आयी सबको गले लगाने रंगों की ये डोली रे ||२||
इसी भांति प्रेम का दीपक, सबके दिल में जला रहे,
इसी भांति देश में अपने हर दिन होली जवां रहे |
देखो कहीं न छूटे हमसे यह मधुरिम रंगोली रे,
आयी सबको गले लगाने रंगों की ये डोली रे ||३||
— दीपक श्रीवास्तव
आदरनीय …
दीपक जी बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है …..महान कई दिनकर जी शैली साफ़ झलक रही है …बहुत बहुत बधाई …