Homeअविनाश कुमारएक मुक्तक-जमीर ही मर गया इंसानों में एक मुक्तक-जमीर ही मर गया इंसानों में avinash kumar अविनाश कुमार 07/03/2014 No Comments जमीर ही मर गया इंसानों में क्यों लहु भरा इन ऑखों में क्यों बैचनी है ख्वाबों में बस यही सोचता रहता हॅू मैं जमीर ही मर गया इंसानों में अविनाश कुमार Tweet Pin It Related Posts बहुत कुछ सिखाया हैं आशिकी ने ! सोचता हूँ अक्सर तुझे ही न जाने क्यूँ मुझसे कुछ खफा-सा हैां About The Author avinash kumar student Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.