
सृष्टि को रचती है नारी ,
गरिमा-मय गौरब सी नारी.
करुणा-दया-ममता की मूरत,
सुन्दरता की प्यारी सूरत.
सद्विचार सदभाव से संपन्न,
दोष –दुर्गुण का करे उन्मूलन .
पत्नी -भगिनी-जननी होती,
दीपक की ज्योति सी जलती.
तुलसी की पौधे सा पावन,
उनसे शोभित घर और आंगन.
स्वप्रेरित है जिसकी भक्ति ,
कहलाती वो नारी-शक्ति .
नारी कि इससे अच्छा और क्या चित्रण हो सकता है !
सभी रूपों में नारी ममतामयी होती है !
बहुत ही बढ़िया है !……………………..
Very Good Poem
वाह! बहुत खूब….