रिश्ता हर, दीवार सा लगता है
झूठा इश्तहार सा लगता है,
प्यार मोहब्बत सीधे-सादे रस्ते है,
चलना इन पर तलवार सा लगता है,
खुदगर्जी ने दोस्त बनाये बहुत मगर ,
लेन-देन ब्यापार सा लगता है .
परदेश कमाने गया है बेटा जब से ,
घर में बूढ़ा एक बीमार सा लगता है,
दो कुल कि लाज निभाती है बिटिया ,
उसका आना त्यौहार सा लगता है,
माँ से बढ़ कर कोई नहीं इस दुनिया में
होना उसका ईश्वर का अवतार सा लगता है.
प्रेम जी बहुत बढ़िया जज्वातों को पिरोया हैI बहुत बहुत बधाई I
मैंने भी रजिस्ट्रेशन बहुत दिन हो गये करबा रखा है ,लाग इन/आउट भी हो रहा है पर नाम कवियों की सूची में नहीं आ रहा अपितु अज्ञात कवि की श्रेणी में कविता दिखाई जा रही है I कोई सहायता करेगा ?