जिंदगी है धुँआ,बेशक्ल सा धुँआ,
आग नहीं सुलगता, फिर भी जलता है धुँआ
इसकी राह है धुँआ,मंजिले है धुँआ ,
रात है इस जिंदगी में, फिर भी दीखता है धुँआ .
ख्वाहिशे हैं धुँआ , गहरे भेद हैं धुँआ ,
आँखों में कुछ जलता नहीं, फिर भी उठता है धुँआ .
आग है धुँआ,पानी है धुँआ ,
साँसे रुक जाये ,फिर भी जिन्दा है ये धुँआ .
बेशक्ल सी आवाज है धुँआ , अनसुने चेहरे है धुँआ,
चले जाते है सब , फिर भी रहता है ये धुँआ .
धरती है धुँआ , आकाश है धुँआ ,
तुम हो धुँआ , मैं हुँ धुँआ .
खामोश हैं सब ,पर पुकारता है धुँआ,
भीगा है ये जहां, फिर भी सुलगता है ये धुँआ .
जिंदगी है धुँआ , बेशक्ल सा धुँआ,
आग नहीं सुलगता, फिर भी जलता है धुँआ .
नितेश सिंह(कुमार आदित्य )