मैं जहां था भाई
वहाँ नही था वसंत…
वहां कभी नही था वसंत….
मेरे आसपास था सिर्फ
घुप्प काला-अंधियारा
केप-लेम्प की रौशनी के घेरे से झांकती
पसीने से चिपचिपी देह खानिकर्मियों की
कोयले की परतों में छेद बनाते कामगार
और फिर धमाकेदार विस्फोट की थरथराहट
बारुदी गंध…धुँआ..गर्मी…कीचड..कांद
फिर अगले स्थान पर नये विस्फोट की तैयारी…
मैं जहां था भाई
वहां नही था वसंत…
मेरे आसपास था
ढेर-सारे काम का बोझ
घडी में वक्त की कमी
उमस और थकान से पैदा
टीस-टीस देह-पीड़ा
चून-तम्बाखू की चिरपिराहट…
मैं जहां था भाई
वहाँ वसंत नही था..
मेरे आसपास थी बतकहियाँ
अफसरों, राजनीतिज्ञों, औरतों से जुडी
नये वेतन समझौते की बातें
पदोन्नति और दिल न लगने के अफ़साने
कोयले के बद्धे पर बैठकर
और क्या बतियाया जा सकता श्रीमान
इसीलिए हमारी दुनिया में
वसंत का कहाँ स्थान………………