माहौल की दुहाई देके जब देश छोड़कर आये थे
दोस्ती, रिश्ते, नातें, घर सब तोड़कर आये थे.
छोड़ आये थे गलियाँ और प्यारे खेत खलियान
पड़ा रहा पीछे बस वो पुराना मकान.
नये देश की भागदौर में उसको गये थे भूल
पुराने उस घर में मेरे जमने लगे थे धूल.
बरसों मैं उस घर को कभी मुड़के भी ना देखा
धुंदली हो रही थी उस घर की सीमा रेखा.
अब की बारिश ने जब याद सताई खूब
उस घर ने बुलाया हमे जैसे के महबूब.
खिलखिलती धूप यह दे गया फरमान
घर की टूटी खिड़की से घुसा है आसमान.
बारिश के साथ ही घर में घुस आता है पानी
अंदर बाहर उसकी होती एक जैसी रवानी.
देवरों के दरारों में घास लगे है उगने
मां की रसोई में दाने, चिड़िये लगे है चुघने.
छोटी सी एक तितली मेरे सर पे चढ़ के बोली
यह है काल का तमाशा, यह उसकी ठिठोली.
देश छोड़कर भागा था तू देके हुमको क्लेश
आज तेरे घर में घुस आया है पूरा देश.