जानता था के कभी कभी दुश्मन भी गले मिला करते हैं
पहली बार जाना के चट्टानों में भी फूल खिला करते हैं
हंसना हंसाना, मिलना मिलाना मेरी फितरत में है
काट लेता हूँ मैं कन्नी,जो हर बात पे गिला करते हैं
न देखना कभी इस तरह लाल पीली आँखों से तुम
वर्ना नज़र के नाखून से हम आत्मा छिला करते हैं
जानते हैं आदत है उनकी चुभोने की नश्तर तो क्या
हम प्रेम शब्दों के धागे से जख्मों को सिला करतें हैं
इश्क़ मोहब्बत की बातें बस सुनता ही आया ‘चरन’
जब प्यार हुआ तो जाना कैसे दिल मिला करते हैं
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त्रुटि हेतु क्षमा प्रार्थी – गुरचरन मेहता
bahut achchha likha hai ji…likhna jari rakhen.
अभी इस परिन्दे ने ढंग से उड़ना भी नही सीखा था, कि कुछ लोगों ने परो को काटने की साजिश ही रच डाली ।।।।