माँ वाणी वन्दना
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मेरे मन के मन मन्दिर में,
माँ वाणी तुम आओ।
मानस तिमिर महासागर में,
ज्ञानालोक जगाओ।
चहुंदिशि आज विषमता फैली,
समता का हो रहा क्षरण है।
अन्यायों के दमन चक्र में,
मानव का हो रहा मरण है।
बनूँ सत्य पथ का अनुगामी,
ऐसी राह दिखाओ।
मेरे मन के मन मन्दिर में,
माँ वाणी तुम आओ।
मानस तिमिर महासागर में,
ज्ञानालोक जगाओ।
सदा प्यार के दीप जलाऊं,
ईर्ष्या का हर भाव मिटा दो।
धन्य हो सके जीवन मेरा,
अवरोधों को काट हटा दो।
शाश्वत प्रेम की कल्पना मेरी,
वाणी मधुर बनाओ।
मेरे मन के मन मन्दिर में,
माँ वाणी तुम आओ।
मानस तिमिर महासागर में,
ज्ञानालोक जगाओ।
कुंठन घुटन निराशा में अब,
हर मानव प्रतिक्षण आकुल है।
दानवता के महापाश में,
जकड़ा मनुज और व्याकुल है।
प्रखर लेखनी कर दो मेरी,
ऐसा योग्य बनाओ।
मेरे मन के मन मन्दिर में,
माँ वाणी तुम आओ।
मानस तिमिर महासागर में,
ज्ञानालोक जगाओ।
– मनमोहन बाराकोटी “तमाचा लखनवी”
nice! “सदा ए परिंदा “17/02/2015
आओ दिल से प्यार करें हम ,
हरियाली घर आँगन आये |
गगन के पंक्षी डाल-डाल से ,
कलरव करते गुन -गुन गाएं |
मधुर मिलन की बेला थी पर ,
चह-चह सुगीत गुनगुनाये |
कोयल की मधुरी वानी थी ,
उ कागा बैठा ध्यान लगाए |
अभिलाषा लोनिज दिल में,
नरानंद निशांत ना लाए |
आओ …………………….|
खट खग झट फुरमान वाला ,
आन आँगन हर्षाने वाला |
मूल- भूल पाषाण शिलाएं ,
ऊँघ उँग खुद नाम लिखाए |
विविध यतन के दाना डाले,
अंध धरातल जाल बिछाले |
चिड़ियों री चहचह सुनने को,
कोना- कोना साफ करा ले |
आओ दिल ………………..||
गादी बइठा झांक लगाए ,
लछिमन चिडिंया ‘मंगल’गाएं|
लाल गुलाबी नीली -पीली ,
धानी मानी वसन बनावे |
नरम गरम नीर पिलवावे ,
गांव ठाँव भू वृन्द बुलावै |
गगन पक्षी दाल ले आई ,
अतरा अतरा लो मुसकाई|
चंदा ज्यों चांदनी अलसाई ,
सूरज के किरने हुलसाये |
आओ दिल ………………..||
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अति सुन्दर सृजन। साधुवाद। सादर नमन। जय माँ शारदे।