माँ की बहती आँखों को निचोड़ कर आया हूँ,
पिता के दिली जज्बातों को झिंजोड़ कर आया हूँ,
ऐ – गरीबी आज सिर्फ और सिर्फ तेरे खातिर,
मै अपनी बेटी को बिलखता छोड़ कर आया हूँ ॥१॥
न हरा है कुटुम्ब और न (विश्व) दुनिया थकी है,
दीपक जलता रहा है, हवा चलती रही है,
महसूस होता रहा है, विश्वास बढ़ती रही है,
ऐ – गरीबी आज सिर्फ, तेरे कारण, मेरी हिम्मत बढ़ती रही है ॥२॥
बहते आश्कों की जुबान नहीं होती,
अल्फाजों में गरीबी बयान नहीं होती,
मिले जो दौलत और शोहरत तो संभाल कर रखना,
क्युकी इज्जत हर किसी की मोहताज नहीं होती ॥३॥