हिम्मत क्यों हारें हम……8311
माना संघर्श बहुत जीवन में
पर संधर्शो से क्या डरना
मौत तो आनी हेै इक दिन सबको
मरने से पहले क्या मरना।
काटे ही तो बिछे है राहों में
झुक कर चुन लेगें सारे
षिव बन पी जायेंगे हलाहल
चुभन से उसकी क्या डरना।
सुखे फूल भी मुस्काते है
कहते हैं कितने ही अफसाने
चुपचाप किताबो में रख लेंगे
यादों का बनाके सिरहाना।
आज नहीं तो कल
किस्मत हम पर भी मुस्कयेगी
महकेगी बगिया मन आगन की
कली अरमानों की खिल जायेगी
हिम्मत हार कर बैठ न ऐसे
कदमों में अपनी जान तू ला
कितना लडेगी बदकिस्मती हमसे
आखिर थक के हट जायेगी।
काटे फिर वही फूल बनेंगे
हलाहल अमृत हो जायेगा
संधर्श भरे जीवन पर फिर
रंग इंद्रधनुशी छायेगा।
सब्र रख थोडा ओर तू
बादल सब ये छट ही जायेगें
रात धनेेरी मावस सी सही पर
रात से इतना डरना क्या।
माना संधर्श बहुत जीवन में
पर संधर्शो से डरना क्या।
वंदनामोदी गोयल, फरीदाबाद।
9958998769
superb.