बिछुड़ के तुम से
बिछुड़ के तुम से ये अहसास हुआ हो जैसे
हर खुशी दिल की तेरे बिन उदास हो जैसे।।
इसे खुशी या किसी ग़म की इन्तिहाँ समझो
किसी वफ़ा या नसीबों की दास्ताँ समझो
जब भी हँसता हँू कोई दर्द उभर आता है
दरमयाँ अश्क़ तेरा अक़्स नज़र आता है
हम जुदा हो के बहुत दूर हो गये लेकिन, तुम मेरे दिल के कहीं आस पास हो जैसे।।
तुम हक़ीकत या किसी कल का ख़्वाब हो कोई
किसी वफ़ा की दुआ या अज़ाब हो कोई
एक अज़नवी सी क़सक दिल में बसी है एैसे
ऐसा लगता है कहीं कोई कमीं हो जैसे
ग़मों की धुंध में कुछ ढूँढती रहीं आँखें, हर लम्हा दिल को किसी की तलाश हो जैसे।।
जितना पीता हूँ , तपिश और बढ़ा जाती है
दिल में वहशत के चरागों को जला जाती है
क्यों नजर आये तू ही, ख़्वाब में ख्यालों में
तमाम उम्र ही गुज़री है इन सवालों में
जबभी चाहा है जिसे दिल से भुलाना चाहा,जोकभी बुझ ना सकी तुमवो प्यास हो जैसे।।