Homeअरविन्द श्रीवास्तववक्त बूँदों के उत्सव का था वक्त बूँदों के उत्सव का था साक्षी प्रजापति अरविन्द श्रीवास्तव 18/02/2012 No Comments वक्त बूँदों के उत्सव का था बूँदें इठला रही थी गा रही थीं बूँदें झूम – झूम कर थिरक रही थीं पूरे सवाब में दरख्तों के पोर – पोर को छुआ बूँदों ने माटी ने छक कर स्वाद चखा बूँदों का रात कहर बन आयी थी बूँदे सबेरे चर्चा में बारिश थीं बूँदें नहीं Tweet Pin It Related Posts तानाशाह मामूली आदमी का घोषणापत्र अंटार्कटिका का एक हिमखण्ड About The Author साक्षी प्रजापति Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.