हसरत आँखों की
इक मेरी आँखों की हसरत थी, करीब में लाया उसको,
मन में आया तो, होठों से लगाया उसको,
कम्बख्त ऐसा पड़ा चस्का, उसको होठों से लगाने के बाद,
इक आदत ही बना दी, उसको उठाने के बाद।
नशा शराब का होगा ऐसा, यह मालूम न था, होश जब आया, मेरे बर्बाद होने के बाद।
मेरे अपने होशो-हवास पर, कुछ अख्तियार ही न था,
उम्र कुछ भी न थी मेरी, जमात दसवीं की भी पहुंच न थी मेरी,
ऐसे नाजुक मोड़ पर, उम्र की छोटी नोंक पर, नशे का राक्षस चढ़ बैठा,
कम्बख्त, मैं नशा कर बैठा।
मौका इक खास था, परिवार के मँच पर, दावत का भी इंतजाम था,
बड़ों की मस्ती में, शराब का भी दौर था,
बस, मेरी नजर क्या पड़ी, इक प्याले पर आन लड़ी,
मेरी आँखों की हसरत थी, बस, यहीं से नशे की लत्त थी पडी।
मैं प्याले को होठों से लगा बैठा, कम्बख्त मैं नशा कर बैठा।
छोड़ बचपन के सब मित्र, सखा, हमजोली, नशे की टोली में, मेरी भी गिनती हो ली,
विद्यालय की छोड़ सब पुस्तक किताबें,
शौचालय के पिछवाड़े में ही, नशे से हो गई आँखमिचौली,
कोई क्या करता, हर कोई पुलिस की मार से भी डरता,
इसीलिये, नशा हर कोई यहां छिप कर ही करता।
नशे से मेरी मुलाकात ने कई भेद खोल दिये,
नशे के बाजार ने कई तोहफे नशे के है दिये,
ब्राउन शुगर,कोकीन, को हमने जाना,
अब तो हमे भी आ गया, चरस, गांजे का सुट्टा लगाना,
हसरत को अपनी आदत बना बैठा, कम्बख्त, मैं नशेबाज बन बैठा।
फिर क्या था, नशे की आदत ने पूरा असर दिखाया,
जब उम्र ने जवानी से हाथ मिलाया, आंखों तले अंधेरा छा गया, सर मेरा चकराया।
न काई तालीम, न इज्जत रही कोई,
अब तक तो पूरी जवानी भी नही छाई, पर लगता है जैसे, बीमार बूढ़ा कोई।
नशे ने मेरे हाथ पैर को नाकाम कर दिया है,
दिमाग को भी मेरे, नजर बंद कर दिया है।
जिंदगी अब आगे बीमार पड़ रही है,लगता है जैसे,
जिंदगानी अपना रस्ता, साफ कर रही है।
घर वालों को तो दुःखी कर ही डाला,
दोस्तों रिश्तेदारों ने भी मुँह फेर लिया है।
बचपन के नशे की हसरत ने,मुझे सिला दिया,
पढ़ाई में तो तरक्की न मिली,
मगर नशे ने तरक्की दे, जिंदगी से मौत तक पहुँचा दिया।
उद्धृत: लेखक की पुस्तक ’ मधु बावरे ’ से।