चाँद उनको किसी का है मुखड़ा लगे
चाँद मुझको तो रोटी का टुकड़ा लगे
चाँद उनके लिए हो कलंकित भले
चाँद मुझको तो साफ और सुथरा लगे
चाँद नभ में निषा भर टहलता रहा
चाँद मुझको नदी में है उतरा लगे
रात रोती रही जब वसन के लिए
चाँद तब उनके तन का है कपड़ा लगे
दुख का दुखड़ा जब कोई सुनाता फिरे
चाँद ऐसे ‘सुधाकर’ का दुखड़ा सुने.