हे भारत देश, तुम जागो
पहचानों अपने शक्ति को
याद करो उन वीरों को
समझो अपने इतिहास को
सोचो इन परिस्थिति को
कुछ करने कि जरूरत को
कुछ बदलने कि चाहत को
करोड़ों मन के सपनों को
उन सपनों को बुनने को
हे भारत देश, तुम जागो !
पहचानों अपने शक्ति को
याद करो उन वीरों को
समझो अपने इतिहास को
सोचो इन परिस्थिति को
कुछ करने कि जरूरत को
कुछ बदलने कि चाहत को
करोड़ों मन के सपनों को
उन सपनों को बुनने को
हे भारत देश, तुम जागो !
एकता के उन इशारों को
जाति-भेद के नकारों को
आँसुओं के उन टप टप को
गम में डुबे उन चेहरों को
सेना बल के तकलीफों को
आम जनता के लाचारी को
थम कर बैठी आशाओं को
उनपर जीतने की चाहत को
समय के उस शीघ्र गति को
उस गति के साथ चलने को
हे भारत देश, तुम जागो ! !
कविता अच्छी है, भाव भी अच्छे हैं, परंतु यह देख देख कर मन नीरस हो जाता है कितना लिख लो, कितना ही कह लो, कोई भी बदलने के लिए तैयार ही नहीं होता। लगता है कि अब जागने की परिभाषा भी बदलनी पड़ेगी
आपने कहा तो बिल्कुल सच है.. हम अपने आप को पेह्ले बदले.. यहि हम कर सकते है !! ध्न्यवाद आपका.