ये कौन बहाता है, किसका ये पसीना है
खेतों को कहे मक्का खलिहान मदीना है.
जो ख़ून बना पानी प्यासों को तृप्ती दे
दुख-सुख में जो जीता उसका ही जीना है.
जो कर्म को काशी सा कर्तव्य कहे काबा
बस जाता जो दिल में वो दिल का नगीना है.
दीपक सा जो जल के देता है सदा आभा
आकाश को जो ओढ़े धरती ही बिछौना है.
सुध लो ऐ सुधाकर तुम है कौन तेरा साथी
इतिहास लिखो उसका उसका ही जीना है.