जिंदगी। ……………. रोते रोते भी ये गुनगुनाने लगती है
जिंदगी भी क्या क्या सुनाने लगती है
मेरे मालिक क्या तेरे मन में है
छुपा रोज कुदरत भी क्यों डराने लगती है
रोते रोते भी…… सुना है तेरी बस्ती में सब आबाद रहते है
तो बता क्यों ये बार बार सैलाब आते है
तू है तो तेरे होने का अहसास भी करा दे
इस धरती पर भी प्रेम के अंकुर खिला दे रोते रोते भी……..
एक दूसरे के दुःख को महसूस करे लोग
ऐसी कोई जन्म घुट्टी बना के पिला दे
रोने में खुदाई की जुदाई नजर आती है
जिंदगी भी अब वीरान दिखाई देती है
रोते रोते भी……… आंखे अश्क ओ पलकें भीगी भीगी लगती है
जिंदगी भी क्या क्या दिखने लगती है
रोते रोते भी ये गुनगुनाने लगती है
जिंदगी भी क्या क्या सुनाने लगती है
………………………गिर्राज किशोर शर्मा “गगन” मो. 09617226588
बढिया है