GAZAL
अपने हसीन रुख़ से हटा के नक़ाब को
शर्मिंदा कर गए हैं शबे माहताब को
बदकारियों पे इतना न इतराए कभी
रखता है वो सभी के हिसाबो किताब को
तेरी निगाहे नाज़ ने मदहोश कर दिया
मैंने छुआ नहीं क़सम से शराब को
दिल चाहता है उसको दुआ से नवाज़ दूँ
जब देखता हूँ बाग़ में खिलते गुलाब को
जुगने कहीं न आए मुक़ाबिल में एक दिन
ये बात सोचना पड़ा है आफ़ताब को
इंसानियत से दूर नहीं कभी वो “रज़ा” कभी
जिसने पढ़ा है दिल से खुदा के किताब को
9981728122 ……..सलीम रज़ा
salim ji lajavab gajal likhi hai.